गीता सुविचार
आत्मा न जन्मती, न मरती – ती शाश्वत आहे.
जो आत्म्यावर विश्वास ठेवतो तो कधीच दुःखी होत नाही.
कर्म कर, फळाची चिंता करू नको.
धर्मासाठी केलेले कर्म कधीही व्यर्थ जात नाही.
राग आणि लोभ मनुष्याला नाशाकडे नेतात.
ज्याने इंद्रियांवर विजय मिळवला, तोच खरा योगी.
ज्ञान हेच अज्ञानाचा नाश करणारे प्रकाश आहे.
मनुष्याचा शत्रू त्याचे असंयमित मन आहे.
जो समत्वभाव ठेवतो तो खरा ज्ञानी.
विनम्रतेतूनच ज्ञान प्राप्त होते.
भक्ती हेच मोक्षाचे द्वार आहे.
सत्याचा मार्ग नेहमीच कठीण पण योग्य असतो.
अहंकार मनुष्याला अधःपतनाकडे नेतो.
क्षमा हे सज्जनतेचे खरे लक्षण आहे.
आत्मसंयमाने मनुष्य देवत्वाकडे झेपावतो.
लोभाचा त्याग केल्याशिवाय शांती मिळत नाही.
ज्याचे मन स्थिर आहे, तोच खरा सुखी आहे.
सर्व प्राणी माझ्यात आहेत आणि मी सर्व प्राण्यात आहे.
मनुष्याच्या आयुष्याचे उद्दिष्ट आत्मज्ञान आहे.
निष्काम कर्म योग सर्वोत्तम आहे.
रागाला रागाने नाही, तर क्षमाने जिंकावे.
खरा योगी तोच जो सर्वत्र ईश्वर पाहतो.
सत्कर्म हेच मनुष्याचे खरे धन आहे.
परोपकार हा धर्माचा मुख्य आधार आहे.
मृत्यू म्हणजे आत्म्याचा बदललेला वेश आहे.
भक्तीने सर्व पापे नाहीशी होतात.
प्रत्येक संकटात धैर्याने उभे राहा.
निस्वार्थ कर्माने परम शांती मिळते.
मनुष्याचे स्वरूप त्याच्या विचारांप्रमाणे असते.
सुख-दुःखात समभाव ठेवणे हेच योग आहे.
ज्याने मोह जिंकला त्याने जग जिंकले.
जो स्वतःच्या आत्म्यावर विजय मिळवतो, तोच खरा वीर.
कर्तव्यकर्म करत राहा, फळावर अधिकार नाही.
श्रद्धा ही ज्ञानाची सुरुवात आहे.
ईश्वरावर अढळ विश्वास ठेवा.
जो दुसऱ्याला दुखावत नाही तो खरा भक्त.
लोभ, क्रोध, अहंकार – हे तिन्ही नाशाकडे नेतात.
समाधानी मनुष्य नेहमी आनंदी राहतो.
साधेपणा हेच श्रेष्ठ जीवन आहे.
भक्ती आणि ज्ञान यांचे मिलन मोक्ष देते.
जो भक्त नम्र आहे त्याला मी प्रिय आहे.
ज्याचे मन स्थिर आहे तो अढळ राहतो.
ध्यानातून परमसत्याचे ज्ञान मिळते.
सत्याचे पालन करणे हेच धर्म आहे.
निष्काम सेवा ही सर्वोच्च योग साधना आहे.
मनुष्याने आपल्या धर्माचे पालन करणे आवश्यक आहे.
लोभ आणि आसक्ती सोडल्याने शांती मिळते.
साधुसंगतीतून आत्मज्ञान वाढते.
खरा योगी दुसऱ्याच्या दुःखात स्वतःचे दुःख पाहतो.
ईश्वर सर्वत्र आहे – त्याला भेदभाव नाही.
मनुष्याने नेहमी संयमी राहावे.
धर्म म्हणजे कर्तव्यकर्माचे पालन.
आत्मा हेच सत्य आहे, बाकी सर्व नश्वर आहे.
भक्तीच्या मार्गाने ईश्वरप्राप्ती होते.
जो लोभ सोडतो त्याला खरे सुख मिळते.
कर्मयोग हेच सर्वश्रेष्ठ योग आहे.
ज्ञानी व्यक्तीला सुख-दुःखात फरक वाटत नाही.
समाधानी व्यक्ती नेहमी मुक्त असते.
विश्वास आणि श्रद्धा जीवनाचा आधार आहे.
जो दया करतो तो ईश्वराला प्रिय असतो.
राग आणि द्वेष सोडा, शांती मिळेल.
धर्माचा खरा आधार सत्य आहे.
ध्यान आणि संयमाने मन शुद्ध होते.
भक्तीमुळे सर्व बंधने सुटतात.
जो मनावर विजय मिळवतो तो सर्व काही जिंकतो.
आत्मा हेच अमर, शरीर नश्वर आहे.
ज्याचे मन निर्मळ आहे त्याला ईश्वर प्रिय आहे.
प्रत्येक जीवात ईश्वर आहे.
आत्मज्ञान हेच खरे ज्ञान आहे.
संतोषी मनुष्य नेहमी आनंदी असतो.
भक्तीमुळे जीवन पवित्र होते.
जो क्षमाशील आहे तो खरा महान आहे.
मोह आणि माया मनुष्याला बांधतात.
योगी तोच जो सर्व प्राण्यांना सारखा पाहतो.
धर्माचे पालन करा, अधर्म टाळा.
ज्याला ईश्वराची भक्ती प्रिय आहे त्याला भय नसते.
मनुष्याने नेहमी सत्य बोलावे.
जो लोभ जिंकतो तो खरा मुक्त आहे.
परोपकाराने आत्म्याला शांती मिळते.
ध्यान हेच मुक्तीचे साधन आहे.
भक्तीने अहंकार नाहीसा होतो.
संयमाने सर्व काही शक्य आहे.
ज्याला ईश्वराची कृपा आहे त्याला भय नाही.
खरा भक्त नेहमी नम्र असतो.
जो ज्ञान शोधतो त्याला सत्य सापडते.
रागीट माणूस नेहमी दुःखी राहतो.
सत्य, अहिंसा आणि दया – हे धर्माचे स्तंभ आहेत.
धर्माच्या मार्गाने चालणारा कधीच हरत नाही.
भक्ती हेच आत्म्याचे खरे अलंकार आहे.
ईश्वराची कृपा ज्या मनुष्यावर आहे तोच खरा सुखी आहे.
गीता कहती है – आत्मा न जन्म लेती है न मरती है।
जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ।
अपने धर्म में मरना भी श्रेष्ठ है, पराए धर्म में जीवन भी भय लाता है।
फल की चिंता मत करो, केवल कर्म करो।
आत्मा शाश्वत है, उसका नाश कभी नहीं होता।
क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रमित होती है।
स्थिर बुद्धि वाला व्यक्ति सुख-दुख में समान रहता है।
जिसे न मोह है, न द्वेष – वही सच्चा योगी है।
आत्मसंयमी व्यक्ति ही परम शांति को प्राप्त करता है।
गीता का सार – कर्म करो, फल की चिंता मत करो।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है।
योगी वही है, जो सब प्राणियों में समान दृष्टि रखता है।
गीता कहती है – दुख का कारण केवल आसक्ति है।
कर्म करना तुम्हारा अधिकार है, परिणाम परमात्मा पर छोड़ो।
आत्मा कभी मरती नहीं, वह केवल शरीर बदलती है।
सच्चा योग वही है, जो मन, इंद्रियों और बुद्धि पर नियंत्रण करे।
सुख-दुख, हानि-लाभ, जय-पराजय – सबमें समभाव रखना योग है।
ज्ञान का दीप अज्ञान का अंधकार मिटाता है।
जो आत्मा को जानता है, वह कभी शोक नहीं करता।
समर्पण ही भगवान तक पहुँचने का मार्ग है।
इन्द्रियों पर नियंत्रण ही सच्चा बल है।
जो स्थिर चित्त है, वही सच्चा ज्ञानी है।
कर्म का त्याग नहीं, बल्कि फल की आसक्ति का त्याग श्रेष्ठ है।
गीता कहती है – लोभ और क्रोध ही विनाश का कारण हैं।
जिसने स्वयं को जीता, वही संसार को जीत सकता है।
भक्तिपूर्वक किया गया कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।
योग का अर्थ है – आत्मा और परमात्मा का मिलन।
गीता कहती है – जो मुझे भजता है, मैं सदैव उसका रक्षक हूँ।
जिसने क्रोध को जीता, वही शांति को प्राप्त करता है।
गीता कहती है – आत्मा का शुद्ध स्वरूप ही परमसत्य है।
अपने कर्म को ईश्वर को अर्पित करो।
आत्मा का ज्ञान ही सर्वोत्तम ज्ञान है।
धैर्य और संयम ही जीवन का आभूषण हैं।
सच्चा योगी वही है, जो मित्र और शत्रु में समान देखे।
मृत्यु से डरो मत, यह तो आत्मा का परिवर्तन है।
गीता कहती है – निराशा पाप है।
श्रद्धा से किया हुआ कर्म ही फलदायी होता है।
मनुष्य का जीवन उसके विचारों से बनता है।
आत्मा अविनाशी है, उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता।
लोभ और मोह ही बंधन का कारण हैं।
जो इन्द्रियों को वश में कर ले, वही ज्ञानी कहलाता है।
गीता कहती है – मनुष्य का कर्तव्य ही उसका धर्म है।
अपने कर्म को ईश्वर के लिए करो, यही मुक्ति का मार्ग है।
सुख-दुख क्षणिक हैं, उनसे प्रभावित मत हो।
गीता कहती है – जो दान करता है, वह दिव्य पुण्य पाता है।
आत्मज्ञान ही सर्वोत्तम तपस्या है।
जो दूसरों को क्षमा करता है, वही श्रेष्ठ है।
ईश्वर पर विश्वास ही सबसे बड़ी शक्ति है।
गीता का उपदेश है – सत्य और धर्म पर अडिग रहो।
जिसने मन को जीता, उसने सबकुछ जीत लिया।
मृत्यु सत्य है, पर आत्मा अमर है।
गीता कहती है – कर्म ही पूजा है।
अपने विचार शुद्ध करो, यही सच्चा तप है।
जो लोभ-मोह से परे है, वही सच्चा योगी है।
गीता कहती है – हर आत्मा मेरे अंश से उत्पन्न है।
भक्तियोग सबसे सरल मार्ग है।
जिसने इच्छा का त्याग किया, वही मुक्त है।
गीता कहती है – प्रेम से किया गया भजन सबसे प्रिय है।
समर्पण ही सर्वोत्तम साधना है।
मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है।
गीता कहती है – शांति भीतर से आती है।
जिसने आसक्ति छोड़ी, वही मुक्त हुआ।
आत्मा शुद्ध, बुद्ध और नित्य है।
अहंकार का त्याग ही मोक्ष का द्वार है।
गीता कहती है – मैं ही सबका आधार हूँ।
भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है।
जो सत्य पर अडिग है, वही धर्मात्मा है।
गीता कहती है – ईश्वर सबके हृदय में है।
जिसने इन्द्रियों को जीता, वही सच्चा साधक है।
गीता कहती है – असत्य का नाश निश्चित है।
अपने धर्म का पालन ही सर्वोत्तम है।
योगी वही है, जो दूसरों के दुख-सुख में सहभागी हो।
गीता कहती है – श्रद्धा से ज्ञान मिलता है।
मोह का त्याग ही जीवन का उत्थान है।
जिसने लोभ का त्याग किया, वही संतोषी है।
गीता कहती है – मैं भक्त के प्रेम में बंध जाता हूँ।
आत्मसंयम से बड़ा कोई बल नहीं।
जो मन को साधता है, वही ईश्वर को पाता है।
गीता कहती है – भक्ति से सबकुछ संभव है।
क्षमा ही धर्म का आभूषण है।
जिसने अहंकार छोड़ा, वही ईश्वर को जान पाया।
गीता कहती है – मैं भक्त के लिए सदैव उपलब्ध हूँ।
जो सच्चा कर्म करता है, वही मुक्त है।
आत्मा न जलेगी, न गलेगी, न सूखेगी।
गीता कहती है – धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा।
जिसने समर्पण किया, वह भयमुक्त हुआ।
गीता कहती है – जो मुझे एकाग्रता से भजता है, मैं सदैव उसका हूँ।
जिसने इन्द्रिय संयम किया, वही साधु है।
गीता कहती है – आशा और निराशा दोनों को छोड़ो।
जिसने संतोष पाया, वही सुखी है।
गीता कहती है – आत्मा का स्वरूप शाश्वत है।
जिसने सेवा की, उसने पूजा की।
गीता कहती है – भक्त का मार्ग सदा सरल है।
जिसने भक्ति पाई, उसने मोक्ष पाया।
ज्ञान ही जीवन का प्रकाश है।
गीता कहती है – मैं सत्य, धर्म और प्रेम हूँ।
जिसने संयम पाया, वही योगी है।
गीता कहती है – हर जीव में मैं ही हूँ।
जिसने करुणा दिखाई, वही सच्चा मानव है।
गीता कहती है – मोह अंधकार है।
जिसने तप किया, वही पवित्र हुआ।
गीता कहती है – आत्मा को कोई शस्त्र काट नहीं सकता।
जिसने ध्यान किया, वही ईश्वर को पाया।
गीता कहती है – सत्य की ही विजय होती है।
जिसने लोभ त्यागा, वही मुक्त हुआ।
गीता कहती है – भक्त कभी विनाश को प्राप्त नहीं होता।
जिसने आत्मज्ञान पाया, वही अमर हुआ।
गीता कहती है – सब धर्मों को छोड़कर केवल मेरा शरण लो।
जिसने विनम्रता पाई, वही श्रेष्ठ है।
गीता कहती है – असत्य अंधकार है, सत्य प्रकाश है।
जिसने ईश्वर पर विश्वास किया, वही निडर हुआ।
गीता कहती है – मैं ही सबका रक्षक हूँ।
जिसने भक्ति की, उसने सब पाया।
गीता कहती है – जिसने तपस्या की, उसने शांति पाई।
जिसने संयम किया, वही विजयी हुआ।
गीता कहती है – आत्मा परम शांति है।
जिसने ईश्वर को भजा, उसने मोक्ष पाया।
गीता कहती है – सत्य और धर्म ही जीवन का आधार हैं।
जिसने सेवा की, वही पवित्र हुआ।
गीता कहती है – भक्त का मार्ग सरल है।
जिसने ध्यान किया, वही मुक्त हुआ।
गीता कहती है – आत्मा अविनाशी है।
जिसने संतोष पाया, वही सुखी हुआ।
गीता कहती है – मैं ही ब्रह्म हूँ।
जिसने करुणा की, वही महान हुआ।
गीता कहती है – हर आत्मा मेरा अंश है।
जिसने संयम किया, वही योगी है।
गीता कहती है – मैं ही शांति का स्वरूप हूँ।
जिसने श्रद्धा की, वही सफल हुआ।
गीता कहती है – भक्त मेरा प्रिय है।
जिसने भक्ति की, वही अमर हुआ।
गीता कहती है – मैं ही धर्म का आधार हूँ।
जिसने सत्य का पालन किया, वही श्रेष्ठ हुआ।
गीता कहती है – प्रेम ही सर्वोत्तम साधना है।
जिसने क्रोध जीता, वही ज्ञानी हुआ।
गीता कहती है – आत्मा अमर है।
जिसने अहंकार छोड़ा, वही विजयी हुआ।
गीता कहती है – मैं ही सत्य हूँ।
जिसने तपस्या की, वही शुद्ध हुआ।
ગીતા कहती है – धर्म ही जीवन है।
जिसने ध्यान किया, वही परमात्मा को पाया।
गीता कहती है – मैं ही प्रेम हूँ।
जिसने संयम किया, वही मुक्त हुआ।
गीता कहती है – मैं ही सबका कारण हूँ।
जिसने आत्मज्ञान पाया, वही दिव्य हुआ।
गीता कहती है – मैं ही मोक्ष का दाता हूँ।
गीता सिखाती है कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है।
हर कार्य निष्काम भाव से करो, फल की चिंता मत करो।
जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा।
मनुष्य का स्वभाव ही उसका मित्र और शत्रु है।
गीता में कहा गया है – क्रोध से मोह उत्पन्न होता है और मोह से विवेक नष्ट होता है।
धर्म वही है जो सबके कल्याण में सहायक हो।
गीता बताती है कि आत्मसंयम ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।
भय केवल अज्ञान का परिणाम है।
कर्म ही मनुष्य की पहचान है, वाणी नहीं।
गीता सिखाती है कि सच्चा योगी वही है जो सबमें ईश्वर को देखता है।
जीवन का सत्य यही है कि परिवर्तन अनिवार्य है।
ईश्वर पर आस्था रखने वाला कभी अकेला नहीं होता।
जो अपने इंद्रियों पर विजय पा लेता है वही सच्चा विजेता है।
आत्मा अमर है, शरीर केवल उसका वस्त्र है।
गीता में कहा गया है – बिना तपस्या के जीवन अधूरा है।
संयम और साधना से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
गीता सिखाती है कि भय और लोभ को त्यागो।
योग से मनुष्य अपने आत्मा से जुड़ता है।
सच्चा भक्त वही है जो सब जीवों में समान दृष्टि रखता है।
गीता कहती है – आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
हर आत्मा में परमात्मा का ही अंश है।
जो आत्मा को पहचान लेता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।
गीता का ज्ञान जीवन की हर समस्या का समाधान है।
सफलता पाने के लिए मन को स्थिर और शुद्ध रखना आवश्यक है।
गीता सिखाती है कि लोभ जीवन का विनाशक है।
योग से शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
निष्काम कर्म ही सच्ची पूजा है।
गीता में कहा गया है – आत्मा अजर-अमर और शाश्वत है।
क्रोध से हमेशा विनाश होता है।
जो दूसरों की भलाई करता है वही सच्चा धर्म का पालन करता है।
गीता सिखाती है कि प्रेम और करुणा ही मानवता का आधार है।
जीवन का मूल उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना है।
धर्म का पालन करना ही सच्ची भक्ति है।
गीता में कहा गया है – सत्य का मार्ग कठिन है पर विजय उसी पर होती है।
योग और ध्यान से आत्मशुद्धि होती है।
आत्मा कभी जन्म नहीं लेती और न मरती है।
गीता का संदेश है – कर्तव्य पालन में कभी आलस्य मत करो।
लोभ और अहंकार मनुष्य के पतन के कारण हैं।
योगी वही है जो सुख-दुख में समान रहता है।
गीता सिखाती है कि सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।
जो अपनी इंद्रियों को वश में करता है वही सच्चा ज्ञानी है।
जीवन में संतुलन ही सच्चा योग है।
गीता बताती है – आत्मा अविनाशी है।
कर्तव्य पालन ही जीवन का धर्म है।
क्रोध और लोभ त्यागकर ही शांति मिलती है।
जो कर्म करता है वही जीवन में सफल होता है।
गीता कहती है – आत्मा कभी बूढ़ी नहीं होती।
जो धर्म के मार्ग पर चलता है वही ईश्वर को प्राप्त करता है।
निष्काम भाव से कार्य करने वाला सदैव सुखी रहता है।
गीता का सार यही है – कर्म करो, फल की चिंता मत करो।