ईर्ष्या पर सुविचार
ईर्ष्या मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है।
ईर्ष्या करने वाला कभी खुश नहीं रह सकता।
ईर्ष्या से मन की शांति नष्ट हो जाती है।
ईर्ष्या दूसरों से अधिक स्वयं को जलाती है।
ईर्ष्या आत्मा की सबसे बड़ी बीमारी है।
ईर्ष्या मित्रता को भी शत्रुता में बदल देती है।
ईर्ष्या की आग में जलता व्यक्ति कभी आगे नहीं बढ़ता।
ईर्ष्या करने वाला हमेशा दुखी रहता है।
ईर्ष्या इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है।
ईर्ष्या से बुद्धि नष्ट हो जाती है।
ईर्ष्या मनुष्य के चरित्र को धूमिल कर देती है।
ईर्ष्या करने वाला हमेशा अकेला हो जाता है।
ईर्ष्या इंसान को अपनी अच्छाई भूलने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या से रिश्तों में खटास आ जाती है।
ईर्ष्या सबसे बड़ी मूर्खता है।
ईर्ष्या मनुष्य के जीवन को नर्क बना देती है।
ईर्ष्या इंसान की प्रगति में बाधा है।
ईर्ष्या से आत्मविश्वास घटता है।
ईर्ष्या करने वाला सदा हीन भावना से ग्रसित रहता है।
ईर्ष्या आत्मा को कलुषित कर देती है।
ईर्ष्या दूसरों का नहीं, अपना नुकसान करती है।
ईर्ष्या जीवन को अधूरा कर देती है।
ईर्ष्या करने से मन की पवित्रता नष्ट होती है।
ईर्ष्या से द्वेष और बैर का जन्म होता है।
ईर्ष्या मनुष्य को नीचा दिखाने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या से इंसान अपनी अच्छाई खो देता है।
ईर्ष्या रिश्तों की सबसे बड़ी दुश्मन है।
ईर्ष्या इंसान के आत्म-सम्मान को गिरा देती है।
ईर्ष्या मन की गुलामी है।
ईर्ष्या करने वाला हमेशा असंतुष्ट रहता है।
ईर्ष्या इंसान को कड़वा बना देती है।
ईर्ष्या जीवन में दुख का कारण है।
ईर्ष्या से इंसान अपनी प्रतिभा खो देता है।
ईर्ष्या से हृदय में अंधकार छा जाता है।
ईर्ष्या करने वाला कभी सफल नहीं हो सकता।
ईर्ष्या इंसान को अंदर से तोड़ देती है।
ईर्ष्या की आग में सुख भस्म हो जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है।
ईर्ष्या से जीवन का आनंद चला जाता है।
ईर्ष्या आत्म-विनाश की ओर ले जाती है।
ईर्ष्या इंसान को दूसरों की अच्छाई से जलाती है।
ईर्ष्या करने वाला कभी संतुष्ट नहीं रहता।
ईर्ष्या आत्मा को गंदा कर देती है।
ईर्ष्या मनुष्य की प्रगति को रोक देती है।
ईर्ष्या करने से इंसान का जीवन बर्बाद हो जाता है।
ईर्ष्या इंसान को अंधा कर देती है।
ईर्ष्या मनुष्य को दुखी जीवन देती है।
ईर्ष्या से इंसान का चेहरा मुरझा जाता है।
ईर्ष्या करने वाला कभी सच्चा सुख नहीं पाता।
ईर्ष्या इंसान को दूसरों का बुरा चाहने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या से आत्मा में कड़वाहट भर जाती है।
ईर्ष्या जीवन का सबसे बड़ा बोझ है।
ईर्ष्या करने वाला खुद ही दुखी रहता है।
ईर्ष्या इंसान को अपनी खुशी खोने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या से मनुष्य दूसरों की खुशी छीनना चाहता है।
ईर्ष्या रिश्तों की जड़ काट देती है।
ईर्ष्या इंसान को भीतर से कमजोर बना देती है।
ईर्ष्या जीवन की राह कठिन कर देती है।
ईर्ष्या इंसान की आत्मा का पतन कर देती है।
ईर्ष्या से मनुष्य अपने ही खिलाफ हो जाता है।
ईर्ष्या इंसान को नीचा सोचने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या जीवन में शांति नष्ट करती है।
ईर्ष्या इंसान को अपनों से दूर कर देती है।
ईर्ष्या से मनुष्य को सुख का अनुभव नहीं होता।
ईर्ष्या जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी है।
ईर्ष्या मनुष्य को कठोर बना देती है।
ईर्ष्या इंसान की समझ छीन लेती है।
ईर्ष्या से जीवन अंधकारमय हो जाता है।
ईर्ष्या इंसान की आत्मा को कलुषित करती है।
ईर्ष्या करने वाला हमेशा असफल रहता है।
ईर्ष्या इंसान की मुस्कान छीन लेती है।
ईर्ष्या मनुष्य के हृदय को दूषित कर देती है।
ईर्ष्या इंसान को दूसरों की खुशी में दुखी करती है।
ईर्ष्या आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु है।
ईर्ष्या करने से जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य को दूसरों का शत्रु बना देती है।
ईर्ष्या इंसान की आत्मा को जला देती है।
ईर्ष्या से इंसान अपनी प्रतिभा खो देता है।
ईर्ष्या मनुष्य के जीवन को विषैला बना देती है।
ईर्ष्या इंसान को हमेशा पीछे धकेलती है।
ईर्ष्या करने वाला हमेशा दुखी और बेचैन रहता है।
ईर्ष्या इंसान को अपना सुख खोने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या मनुष्य के विचारों को नष्ट करती है।
ईर्ष्या इंसान को पतन की ओर ले जाती है।
ईर्ष्या से रिश्ते टूट जाते हैं।
ईर्ष्या इंसान की सफलता का सबसे बड़ा दुश्मन है।
ईर्ष्या मनुष्य के मन को कड़वा बना देती है।
ईर्ष्या इंसान को अपनी अच्छाई भूलने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या से जीवन की खुशी चली जाती है।
ईर्ष्या इंसान को दुर्बल बना देती है।
ईर्ष्या मनुष्य को अपने ही सुख से दूर करती है।
ईर्ष्या इंसान को अपनी ही नजरों में गिरा देती है।
ईर्ष्या मनुष्य को दुखी और असंतुष्ट बनाती है।
ईर्ष्या जीवन की सबसे बड़ी भूल है।
ईर्ष्या इंसान को अधूरा बना देती है।
ईर्ष्या से इंसान का आत्मबल घट जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य को अपने ही खिलाफ खड़ा करती है।
ईर्ष्या इंसान की सफलता रोक देती है।
ईर्ष्या आत्मा को पवित्रता से दूर करती है।
ईर्ष्या जीवन में अंधकार भर देती है।
ईर्ष्या सुविचार
ईर्ष्या मनुष्य के सुख को सबसे पहले छीन लेती है।
ईर्ष्या दूसरों को नहीं, स्वयं को जलाती है।
ईर्ष्या का अंत हमेशा दुख से होता है।
ईर्ष्या करने वाला कभी संतोष नहीं पा सकता।
दूसरों की सफलता से ईर्ष्या करना, अपनी असफलता को पक्का करना है।
ईर्ष्या से मित्रता टूट जाती है।
ईर्ष्या मनुष्य को मानसिक रूप से दुर्बल बनाती है।
ईर्ष्या से मन का चैन खो जाता है।
ईर्ष्या करना, अपने हृदय को आग में जलाना है।
ईर्ष्या से बचना ही शांति का मार्ग है।
ईर्ष्या से ज्ञान नष्ट हो जाता है।
ईर्ष्या जीवन की प्रगति में बाधा है।
ईर्ष्या से मनुष्य का विवेक मर जाता है।
ईर्ष्या दूसरों की खुशी को सहन न कर पाने की बीमारी है।
ईर्ष्या का इलाज केवल आत्मसंतोष है।
ईर्ष्या में जीने वाला कभी प्रसन्न नहीं रह सकता।
ईर्ष्या करने से न दूसरों का नुकसान होता है और न अपना लाभ।
ईर्ष्या से इंसान की सोच सीमित हो जाती है।
ईर्ष्या आत्मा को कमजोर करती है।
ईर्ष्या में जीना आत्मघात के समान है।
ईर्ष्या सबसे बड़ा शत्रु है।
ईर्ष्या करने वाला कभी सफल नहीं हो सकता।
ईर्ष्या मनुष्य को अंधा बना देती है।
ईर्ष्या से प्रेम नष्ट हो जाता है।
ईर्ष्या से रिश्तों में दूरी आ जाती है।
ईर्ष्या का फल केवल दुःख है।
ईर्ष्या आग है, जो भीतर ही भीतर जलाती है।
ईर्ष्या से इंसान की आत्मा घुटने लगती है।
ईर्ष्या से मनुष्य का चेहरा मुरझा जाता है।
ईर्ष्या से जीवन का आनंद खो जाता है।
ईर्ष्या इंसान को अकेला कर देती है।
ईर्ष्या से आत्मविश्वास टूटता है।
ईर्ष्या में पड़ा व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं हो सकता।
ईर्ष्या मनुष्य की प्रगति रोक देती है।
ईर्ष्या जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी है।
ईर्ष्या का जहर धीरे-धीरे जीवन नष्ट कर देता है।
ईर्ष्या इंसान को छोटा बना देती है।
ईर्ष्या से हृदय की पवित्रता नष्ट हो जाती है।
ईर्ष्या दूसरों की अच्छाई देखने नहीं देती।
ईर्ष्या में मनुष्य अपनी शक्ति बर्बाद करता है।
ईर्ष्या रिश्तों की नींव हिला देती है।
ईर्ष्या से इंसान का विवेक भ्रष्ट हो जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य को दुःखी बनाती है।
ईर्ष्या का अंत सदैव अशांति में होता है।
ईर्ष्या इंसान को दूसरों से हीन महसूस कराती है।
ईर्ष्या मनुष्य को अयोग्य बना देती है।
ईर्ष्या का परिणाम विनाश ही होता है।
ईर्ष्या मनुष्य को कृतघ्न बना देती है।
ईर्ष्या का कोई लाभ नहीं, केवल हानि है।
ईर्ष्या इंसान की मानसिक शांति को छीन लेती है।
ईर्ष्या से आत्मसम्मान खो जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य को कायर बना देती है।
ईर्ष्या व्यक्ति को कठोर बना देती है।
ईर्ष्या से स्वभाव बिगड़ जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य को अपनों से दूर कर देती है।
ईर्ष्या से रिश्ते टूट जाते हैं।
ईर्ष्या का बोझ जीवन को भारी कर देता है।
ईर्ष्या करने वाला हमेशा दुखी रहता है।
ईर्ष्या से इंसान की पहचान खो जाती है।
ईर्ष्या मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है।
ईर्ष्या से करुणा मिट जाती है।
ईर्ष्या से दया भाव समाप्त हो जाता है।
ईर्ष्या इंसान को नकारात्मक बना देती है।
ईर्ष्या से अच्छाई खो जाती है।
ईर्ष्या इंसान को बेईमान बना देती है।
ईर्ष्या से उदारता नष्ट हो जाती है।
ईर्ष्या मनुष्य को द्वेष से भर देती है।
ईर्ष्या इंसान को सुखी नहीं रहने देती।
ईर्ष्या जीवन की सबसे बड़ी बीमारी है।
ईर्ष्या से प्रेम का बीज सूख जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य को झूठा बना देती है।
ईर्ष्या का परिणाम केवल पीड़ा है।
ईर्ष्या से मनुष्य दूसरों की सफलता सहन नहीं कर पाता।
ईर्ष्या इंसान की सोच को विषाक्त कर देती है।
ईर्ष्या मनुष्य को दुख का दास बना देती है।
ईर्ष्या जीवन में शांति को छीन लेती है।
ईर्ष्या से मनुष्य अपनों से भी कट जाता है।
ईर्ष्या करने से आत्मा अस्वस्थ हो जाती है।
ईर्ष्या इंसान को सदैव असंतोष में रखती है।
ईर्ष्या दूसरों की अच्छाई की प्रशंसा करने नहीं देती।
ईर्ष्या का बोझ जीवन को नीरस बना देता है।
ईर्ष्या से मनुष्य कृतज्ञ नहीं रह पाता।
ईर्ष्या मनुष्य के जीवन में कलह लाती है।
ईर्ष्या जीवन को नकारात्मक दिशा देती है।
ईर्ष्या से आंतरिक शांति भंग होती है।
ईर्ष्या इंसान को भीतर से कमजोर करती है।
ईर्ष्या का कोई अंत नहीं, केवल दुख है।
ईर्ष्या से जीवन में अंधकार बढ़ता है।
ईर्ष्या इंसान को कड़वा बना देती है।
ईर्ष्या मनुष्य को दूसरों से अलग कर देती है।
ईर्ष्या इंसान को अपनी अच्छाई भूलने पर मजबूर करती है।
ईर्ष्या से इंसान खुद को नुकसान पहुंचाता है।
ईर्ष्या मनुष्य के जीवन का संतुलन बिगाड़ देती है।
ईर्ष्या में डूबा व्यक्ति हमेशा असुरक्षित महसूस करता है।
ईर्ष्या इंसान को उदास कर देती है।
ईर्ष्या जीवन की सुंदरता छीन लेती है।
ईर्ष्या इंसान को आत्मविनाश की ओर ले जाती है।
ईर्ष्या से आत्मिक बल घट जाता है।
ईर्ष्या मनुष्य की आत्मा को अंधकारमय कर देती है।
ईर्ष्या से मुक्त होना ही सच्चा सुख है।